Wednesday, May 23, 2007

और फिर एक दिन

नीली नीली पत्तीयों पर
आसमानी रंगों कि एक तितली
छोटी छोटी काली आँखें
सून्गती उडती
सोचे कि वो आज़ाद है
स्वरूप से मिले उसे पंख
थर्थाराये हुए झूमे वो
अपने छोटे से जग में बहुत खुश
क्या जाने वो पगली
पंख हैं उसके बहुत छोटे
पंछी नहीं तितली है वो
उड़ ना पाये वो कहीँ दूर
चार दीवारों में कैद न सही
हवाओं ने, मह्कों ने उसे रोका है
छोटीसी दुनिया देखी उसने
जग की क्या उसे परिभाषा है
हरी डाल पे बीज तो फूके
झींगा उस तितली का स्वरूप है
निरा निर्विकार उसका जीवन
सुन्दर उसका मोल
पगली समझे खुद को अनमोल
उड़े वो उस ऊंचे आसमान की ओर
और जाने ना उसकी ऊंचाई
जाल बिछें हैं गुलशन गुलशन
और फिर एक दिन
आया ज़मीन से बुलावा
उन छोटी छोटी काली आंखों में
जागी फिर अन्वेशना।

No comments: