नीली नीली पत्तीयों पर
आसमानी रंगों कि एक तितली
छोटी छोटी काली आँखें
सून्गती उडती
सोचे कि वो आज़ाद है
स्वरूप से मिले उसे पंख
थर्थाराये हुए झूमे वो
अपने छोटे से जग में बहुत खुश
क्या जाने वो पगली
पंख हैं उसके बहुत छोटे
पंछी नहीं तितली है वो
उड़ ना पाये वो कहीँ दूर
चार दीवारों में कैद न सही
हवाओं ने, मह्कों ने उसे रोका है
छोटीसी दुनिया देखी उसने
जग की क्या उसे परिभाषा है
हरी डाल पे बीज तो फूके
झींगा उस तितली का स्वरूप है
निरा निर्विकार उसका जीवन
सुन्दर उसका मोल
पगली समझे खुद को अनमोल
उड़े वो उस ऊंचे आसमान की ओर
और जाने ना उसकी ऊंचाई
जाल बिछें हैं गुलशन गुलशन
और फिर एक दिन
आया ज़मीन से बुलावा
उन छोटी छोटी काली आंखों में
जागी फिर अन्वेशना।
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