Friday, May 25, 2007

दिल ही तो है ना..

दिल ही तो है ना संग-ओ-खीसत
दर्द से भर ना आये क्यों?
रोयेंगे हम हज़ार बार
कोई हमें सताये क्यों?
देर नहीं, हरम नहीं,
दर नहीं, आस्तन नहीं
बैठे हैं रह-गुजर पे हम
ग़ैर हमें उठाये क्यों?
जब वेह जमाल-ए-दिल्फरोज़
सूरते-मेहरे नीम-रोजे
आप ही हो नज़र-सोजे
पर्दे में मुँह चुप्पये क्यों?
दश्ने-ए-गमाज़ जान-सीतां
नाव्के-नाज़ बेपनाह
तेरा ही अक्स-रुख सही,
साम तेरे आये क्यों?
कैदे-हयात-ओ-बंद-ए-गम,
असल में दोनो एक हैं
मौत से पहल्रे आदमी
गुम से निजात पाये क्यों?
हुस्न और उस पे हुस्न-ए-जून
रह गयी बुल्हावास कि एस
हर्मपने पे एतमाद है,
ग़ैर को आजमाये क्यों?
वन वेह गरुरे-इज्ज़-ओ-नाज़
यां यह हिजबे-पासे-वज़न
राह में हम मिलें कहां
बज़्म में वेह बुलाये क्यों?
हाँ वोह नहीं
खुदा परसत
जाओ वेह बेवफा सही
जिसको हो दिनों-दिल अज़ीज़
उसकी गली में जाये क्यों?
घलिब-ए-खास्त के बगैर
कौनसे काम बंद हैं?
रोईये ज़र-ज़र काया?
कीजिये हाय-हाय क्यों?

मिर्ज़ा घालिब

1 comment:

ಭಾವಜೀವಿ... said...

Nice effort..Hats off!!
Nice gazal! I am an ardent fan of Gazal/Galib... It would be still better if you post the meanings of some of the tough phrases of Parsi..